इस दौर में आज़ादी की एक अलग चाह है
जब हम सब कैद हैं अपने घरों में
पता नहीं ये आज़ादी कब आयेगी ?
कल तक समय का सही हिसाब था
और आज लगता है की मैं हूँ कहाँ ।
समय से मैं पूछती हूँ
“तू किधर जा रहा है?
थोड़ा तो रुक जा, थोड़ा तो ठहर जा
इंसान कब तक भागेगा तेरे पीछे ?”
लगता है कि पंछी बन कर कहीं उड़ जाऊँ |
खुले आसमान में उड़ते परिंदे
भी आज छटपटाते हैं आज़ादी के लिए
शायद घर का ठिकाना ही नहीं —
आज इधर तो कल उधर ।
कोरोना कोरोना करते करते
सपने कहीं खो गए हैं
समाधान आने तक
कहीं और ज़्यादा जाने ना चली जाएँ ।
मैं ठहरी हुई हूँ
एक ऐसे मोड़ पर
जहां खुद को कहती हूं
की बस, तू चलते जा, तू सांसे भरते जा
वो आज़ादी भी आयेगी इक दिन ।
Rituparna hails from Assam and she currently teaches in the School of Social Sciences at Kaziranga University, Jorhat, Assam.