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PART III
मैंने सिस्टर सारा से पूछ ही लिया, ‘पुलिस और दंडाधिकारी के बिना चोरी और हत्या की स्थिति से कैसे निपट पाते हैं आप लोग?’
‘चूँकि “मर्दाना” व्यवस्था लागू है, अपराध और पाप की घटनाएँ होती ही नहीं है; इसलिए हमें अपराधी को ढूंढने के लिए न तो पुलिस की ज़रूरत है और न आपराधिक प्रकरणों के निर्णय के लिए मजिस्ट्रेट की।’
‘ये तो सचमुच ही बहुत अच्छा है। मैं मानती हूँ कि यदि कोई बेईमान व्यक्ति हो भी तो आप लोग आसानी से उसे सुधार सकती होंगी। क्योंकि आपने तो खून का एक भी कतरा गिराए बिना एक निर्णायक लड़ाई जीत ली, आप सब को अपराध और अपराधियों को खदेड़ने में बहुत परेशानी नहीं हुई होगी!’
उसने मुझसे पूछा, ‘प्रिय सुल्ताना, तुम यही बैठोगी या बैठक में आना पसंद करोगी?’
मैंने मधुर मुस्कान के साथ जवाब दिया, ‘तुम्हारा रसोई घर तो रानी के दीवाने खास से भी कम नहीं है! लेकिन अब हमें यहाँ से चलाना चाहिए, क्योकि भद्रजन मुझे कोस रहे होंगे कि बड़े समय से मैं उन्हें रसोई में उनका काम नहीं करने दे रही हूँ।’ हम इस बात पर जी भर कर हँसे।
‘जब घर जा कर दोस्तों को ये बताउंगी कि कैसे दूर के इस नारीदेश में महिलायें ही देश पर शासन और सामाजिक मसलों का निर्णय करती हैं, जबकि पुरुष मर्दाने में बच्चों की देखभाल से लेकर खाना बनाने और अन्य घरेलू कार्य संभालते हैं; और खाना बनाना भी इतना आसान है कि बनाने में ही सहज ख़ुशी हो; तो वे बड़े खुश और चकित हो जायेंगे!’
‘ज़रूर, यहाँ जो भी देख रही हो वहां जाकर अवश्य बताना।’
‘अब ज़रा मुझे ये बताओ कि जमीन पर खेती कैसे की जाती है और जमीन को जोतने तथा कठिन शारीरिक कामों को कैसे किया जाता है?’
‘हमारे खेतों को बिजली के द्वारा जोता जाता है और उसी के माध्यम से दूसरे कठिन कार्यों के लिए भी गतिक शक्ति भी मिल जाती है, और हम इसी का प्रयोग हवाई आवागमन में भी करते हैं। हमारे पास न तो रेल मार्ग है और न ही पक्की सड़कें।’
मैंने कहा, ‘इसलिए यहाँ न सड़क दुर्घटना होती है न ही रेल की। क्या आप को बारिश के पानी कि ज़रुरत महसूस नहीं होती?’
‘कभी नहीं क्योंकि जल-गुब्बारे स्थापित हैं। जो बड़ा गुब्बारा और उससे जुड़े पाइप आप को दिख रहे हैं न? उसकी सहायता से हमें जितना पानी चाहिए, ले लेते हैं। हमें बाढ़ या आंधी-तूफानों से भी जूझना नहीं पड़ता। प्रकृति से जितना कुछ प्राप्त किया जा सकता है, हम उसी को प्राप्त करने में लगे रहते हैं। हमें एक दुसरे से झगड़ने का समय ही नहीं मिलता क्योंकि हम खाली बैठते ही नहीं। हमारी रानी वनस्पति विज्ञान में बहुत रूचि रखती हैं। ये उनकी इच्छा है कि पूरे देश को एक विशाल उद्यान में बदल दिया जाए।’
‘ये बहुत ही सुन्दर परिकल्पना है। आप सब मुख्य रूप से भोजन में क्या लेते हैं?’
‘फल’
‘गर्मियों में आप अपने देश को ठंडा कैसे रखती हैं? हमें तो गर्मीं के दिनों में बारिश का होना बड़ी राहत जैसा लगता है।’
‘जब गर्मी बहुत बढ़ जाती है, हम कृत्रिम फव्वारों द्वारा धरती पर खूब सारा छिडकाव करते हैं। सदियों में सूर्य की गर्मी से कमरों को गर्म रखते हैं।’
उसने मुझे अपना स्नान घर दिखाया जिसकी छत अस्थायी थी। वह जब चाहे छत को सरका कर (मानो वह किसी डब्बे का ढक्कन हो) और फव्वारे की नलची को खोल कर नहाने के लिए फव्वारे का इस्तेमाल कर सकती थी।
‘आप सब बहुत भाग्यशाली हैं!’ मेरे मुंह से निकल पड़ा। ‘आप सब कितने संतुष्ट हैं! क्या मैं जान सकती हूँ कि आप लोगों का धर्म क्या है?’
‘हमारा धर्म प्रेम और सत्य पर आधारित है। यह हमारा धार्मिक कर्तव्य है कि हम एक दूसरे के साथ प्यार से रहें और हर हालत में सत्य निष्ठा बनाये रखें। यदि कोई व्यक्ति झूठ बोलता है, उसे ……… ’
‘मृत्युदंड की सजा मिलती है?’
‘न, मृत्युदंड नहीं। हम प्रभु द्वारा दिए जीवन, विशेष कर मनुष्य जीवन को ख़त्म करने में आनंद नहीं लेते। झूठ बोलने वाले को यह जगह छोड़ देने और कभी भी वापस नहीं आने को कह दिया जाता है।’
‘क्या नियम तोड़ने वाले को कभी माफ नहीं किया जाता है?’
‘हाँ, यदि वह व्यक्ति ईमानदारी से पश्चाताप करता है।’
‘क्या आपको अपने सगे-सम्बन्धियों के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति से से मिलने की इजाज़त नहीं है?’
‘पवित्र सम्बन्धियों के अतिरिक्त किसी से नहीं।’
‘हमारे पवित्र संबंधियों का घेरा बहुत कम है; यहाँ तक कि हमारे पहले चचेरे-ममेरे भाई-बहन भी पवित्र संबंधियों में नहीं आते।’
‘लेकिन हमारा पवित्र सम्बन्धियों का घेरा काफी विस्तृत है। हमारे यहाँ दूर का चचेरा-ममेरा भाई भी भाई की तरह ही पवित्र होता है।’
‘यह तो बहुत ही बढ़िया है। मुझे दिख रहा है कि शुचिता का राज है आपकी भूमि पर। मुझे आपकी रानी, जो इतनी सद्गुणी और और दूर-दृष्टिवाली हैं और जिन्होनें ने ये सारे नियम बनाए, का दर्शन अवश्य करना चाहिए।’
सारा ने सहमति में कहा, ‘ठीक है।’
फिर उसने एक चौकोर तख्ते के ऊपर एक जोड़ी गद्दी को स्क्रू के सहारे कसा जिससे उसने दो चमकीले और अच्छे से पॉलिश की हुई गेंदों को जोड़ दिया। मेरे पूछने पर कि ये गेंदें किस लिए हैं तो उसने बताया कि ये हाइड्रोजन की गेंदे हैं और इनका उपयोग गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को कम करने के लिए किया जाता है। अलग-अलग भारों के मुताबिक अलग-अलग क्षमताओं के गेंदों का प्रयोग किया जाता है। उसके बाद उसने हवाई-कार के साथ दो पंखनुमा पत्तियां जोड़ दीं जो उसके अनुसार बिजली से चलती थीं। जब हम उसमे ठीक से बैठ गए, उसने एक नॉब घुमाया और पत्तियां नाचने लगीं और उनकी गति हर क्षण लगातार बढती ही गई। पहले हम छह-सात फीट ऊपर उठे और फिर उड़ने लगे। और इससे पहले कि मुझे अहसास हो कि हम आगे बढ़ रहे हैं, हम तो रानी के उद्यान में थे।
मेरी दोस्त ने मशीन को उल्टा चला कर हवाई-कार को नीचे उतारा और जब कार का जमीन से संपर्क हुआ, मशीन को बंद कर दिया गया और हम बाहर आ गए।
रानी ने गर्मजोशी से अभिवादन करते हुए कहा ‘तुम आ गईं!’ मेरा परिचय उस राजेश्वरी से कराया गया और वे बिना किसी ताम-झाम के बड़ी आत्मीयता से मुझसे मिलीं।
उन से मिलकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई। बातचीत के क्रम में उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें अपनी प्रजा को किसी और देश के साथ व्यापार करने की अनुमति देने में कोई आपत्ति नहीं है। ‘लेकिन’ वे कहती रहीं, ‘उन देशों के साथ व्यापार करना संभव नहीं है जो अपनी औरतों को जनाने में रखते हैं और जो बाहर आकर हमारे साथ व्यापार नहीं कर सकतीं। पुरुष हमें थोड़े निम्न नैतिकता के लगते हैं और इसलिए हम उनके साथ व्यवहार रखना पसंद नहीं करते। हमें न तो दूसरों की भूमि की इच्छा है न ही उनके हीरे-जवाहरात हमें चाहिए चाहे वो कोहिनूर से भी हजारों गुना चमकीलें हों और न ही हम किसी राजा के मयूरासन की ही ख़्वाहिश रखते हैं। हम ज्ञान की गहराइयों में गोता लगाते हैं और उन अमूल्य रत्नों की पता लगाते हैं जिसे प्रकृति ने हमारे लिए अपने भीतर संजो रखा है।’
रानी से विदा लेकर मैंने उन प्रसिद्ध विश्वविद्यालयों का भी भ्रमण किया जहाँ मुझे उनके कारखानों, प्रयोगशालाओं और निरिक्षण-गृहों को देखने का मौका मिला।
उन दिलचस्प जगहों को देखने के बाद हम फिर हवाई-कार में सवार हुए और जैसे ही वह आगे बढ़ना शुरु हुई कि मैं किसी तरह नीचे फिसल कर गिर गई और उसकी चौंक से मेरा सपना टूट गया। और आँख खुलते ही मैंने खुद को अपने शयन-कक्ष की आराम कुर्सी पर सुस्ताते हुए ही पाया।
[1] अंग्रेजी में लिखी मूल रचना यहाँ पढ़ी जा सकती है: http://digital.library.upenn.edu/women/sultana/dream/dream.html
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Tribhu Nath Dubey teaches Sociology in Rajasthan. Employed with the Commissionarate of College Education Rajasthan as an Associate Professor, he is currently posted in the Department of Sociology, Government Arts Girls College, Kota. He has been the Co-Editor of the Rajasthan Journal of Sociology. Presently, he is also working as the Secretary of the Rajasthan Sociological Association. As an avid researcher, he has worked in the area of Sociology of Development, Diaspora Studies, and Sociology of Literature.