The Spectacle of Productivity – Sabiha Mazid
COVID-19 has brought our lives to a standstill. For the first time in almost a century, the entire world has…
COVID-19 has brought our lives to a standstill. For the first time in almost a century, the entire world has…
अक्सर यह कहा जाता है कि सामाजिक संकटों के दौर में सामाजिक विज्ञान की बहुत ज्यादा आवश्यकता महसूस की जाती है। जब कभी सामाजिक जीवन के स्थापित ढाँचे में अचानक बाधा आ जाती है या फिर जब हमारे सामाजिक रिश्ते जिन्हें हम आम तौर पर सामान्य मान कर चलते हैं, गंभीर तनाव से भर जाते हैं या जब सुलझे हुए विचार हमारी आंखों के सामने आने वाले कठोर बदलावों को समझने में अपर्याप्त लगने लगते हैं, तो यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य बन जाता है कि आखिर सामाजिक व्यवस्था कैसे कार्य करती है। COVID-19 संकट ने, जिस पैमाने और गहनता के साथ वर्तमान परिस्थितियों में जो परेशानियाँ उत्पन्न की हैं, निश्चित रूप से इसने एक उथल-पुथल भरे दौर को जन्म दिया है। दुनिया भर में, बीमारी और इसे रोकने के प्रयासों ने लोगों के जीवन पर कहर बरपाया है। संक्रमण और मृत्यु के आंकड़ों में होती बढ़ोतरी, बीमारी से जूझने के लिए बिना तैयारी वाली स्वास्थ्य सेवा प्रणाली, और सामान्य आर्थिक गतिविधियों के रुक जाने से से दुनिया भर में विकट अनिश्चितता और संकट का दौर शुरू हो गया है। वैश्विक महामारी ने असमानता के सवाल को सबके सामने लाकर रख दिया है। अर्थव्यवस्था के रुके पहिये ने अनगिनत आजीविकाओं को तबाह कर दिया है और गरीबों पर भारी असर डाला है। भारत में काफी विरोधाभासी तस्वीरें दिखाई दे रही हैं जहाँ एक तरफ तो लाखों प्रवासी कामगार घर पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं वहीं दूसरी तरफ संपन्न वर्ग अपने आरामदायक घरों में सुरक्षित है। इस भयावह असमानता का कोई कैसे अर्थ निकालेगा? ऐसी कौन सी समाजशास्त्रीय अवधारणाएँ हैं जो हमें ऐसी असमानता को समझने में मदद कर सकती हैं? हमें इन सवालों का जवाब शायद वर्ग की अवधारणा में मिल जाये। समाजशास्त्र के भीतर, वर्ग के प्रश्न को समझने के दो मुख्य सैद्धांतिक दृष्टिकोण हैं – एक वेबरियन, जो जर्मन समाजशास्त्री मैक्स वेबर के काम से जुड़ा हुआ है, और दूसरा मार्क्सवादी, जो 19 वीं शताब्दी में मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स के द्वारा शुरू किये गए राजनीति, दर्शन और सामाजिक सिद्धांत के विषय से संबन्धित है। इन दृष्टिकोणों की बुनियादी विशेषताओं को समझना उपयोगी हो सकता है। वेबर के लिए, वर्ग व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जो बाजार में मिलने वाले समरूप संसाधनों, जिन्हें वे बाजार में नियंत्रित करते हैं, के आधार पर जीवन में समान अवसरों की उम्मीद कर सकते हैं। इन अवसर या “जीवन की संभावनाओं “ का विस्तार आय और रहन- सहन के तरीके से लेकर व्यक्तिगत और भावनात्मक संतुष्टि के स्तर तक है। इन संसाधनों में भौतिक वस्तुओं, कौशल और शैक्षिक योग्यता का स्वामित्व शामिल है।[i] उदाहरण के लिए, यदि आप एक कारखाने के मालिक हैं, तो आप श्रमिकों को किराये पर बेहतर उत्पादन करने के लिए रख सकते हैं जिसे बाद में आप बाजार में बेच सकते। इस तरह की बिक्री के माध्यम से आपने जो आय या लाभ प्राप्त किया है वह आपको एक निश्चित स्तर की संपन्नता और कल्याण का भरोसा देता । यह वो संपन्नता है, जो बाजार पर सामान बेचने की आपकी क्षमता पर आधारित है, जो बदले में कारखाने के आपके स्वामित्व पर आधारित थी, जो आपको पूंजीपति वर्ग का सदस्य बनाती है। लेकिन अगर आपके पास ऐसी कोई धन – दौलत या संपत्ति नहीं है, जिसे आप किसी आय को सुरक्षित करने के लिए बेच सकते हैं, तो आप मजदूरी के बदले बाजार में अपने श्रम को बेचने के लिए मजबूर होंगे। एक मजदूर/ कर्मचारी के रूप में, आपकी आय, और फलस्वरूप आपके जीवन की गुणवत्ता सीमित होगी। यह निर्धनता है, जो बाजार पर कुछ भी बेचने की आपकी अक्षमता पर आधारित है, जो आपको श्रमिक वर्ग का सदस्य बनाती है। वेबरियन दृष्टिकोण में वर्ग की स्थिति बाजार पर निर्भर करती है। आप किस वर्ग से संबंधित हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किन संसाधनों के मालिक हैं और किन्हे बाजार में बेच सकते हैं।[ii] मौजूदा संकट के दौर में…
It is often said that the need for social sciences is felt most sharply in periods of social crisis. When…
What earth do you imagine when you say “I’ll do this after I turn 50!” Or “We’ll travel the world after we have…
असमानता समकालीन समाजों की मूलभूत विशेषताओं में से एक है। समाजशास्त्री अपने अध्ययनों मे यह जानने के लिए प्रयासरत रहते…
जलवायु परिवर्तन के दौर में पर्यावरण संवेदनशीलता व लोचशीलता से ही जलवायु सशक्तीकरण का रास्ता निकाला जा सकता है I…
Inequality is one of the fundamental features of contemporary societies. Sociologists focus on interrogating how inequalities are produced, sustained, and…
COVID-19 is a contagious, life-threatening disease with a global spread. It has crossed borders as effortlessly as the global flow…
The pandemic has ushered in a whole new world of fear and uncertainty. In a very short period, we have…
The language of policies is often carefully chosen, sometimes not. Words are thought out and put in order to convey…