मैं प्रवासी मज़दूर हूं 
मेरे जैसे लाखों हैं इस शहर में 
शामिल हूं मैं भी इस शहर के 
मकान से अर्थव्यवस्था बनाने में, 
नजरअंदाज किया गया है मुझे 
ठीक वैसे जैसे गेहूं की बोरी से 
गिरे दाने को किया जाता है 
बावजूद इसके कि भूख मिटाने के लिए 
जरूरी है हर दाने से बनी रोटी। 
मैं फूल हूं 
मेरे जैसे और भी हैं इस चमन में,
शामिल है मेरी खुशबू भी 
इस शहर की फिज़ाओं में
दरकिनार किया गया है मुझे 
ठीक वैसे जैसे किसी लड़की को 
उसके हक से उसके ही 
घर में वंचित किया जाता है 
बावजूद इसके कि जनकल्याण के लिए 
जरूरी है नारी की आजादी। 
मैं दीप हूं 
मेरे जैसे और भी हैं इस रोशनी की कतार में 
शामिल है मेरी भी कोशिश 
इस अन्धकार को हराने में, 
तिरस्कृत किया गया है मुझे 
ठीक वैसे जैसे किसी पशु को 
अनुपयोगी समझ कर 
कसाई को बेच दिया जाता है 
बावजूद इसके कि उसकी जरूरत 
इस प्रकृति को सदैव रहती है। 
                                                                              ⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘⚘
Dharmendra Kumar is  working as a Research Associate at Indian Institute of Public Administration (IIPA), New Delhi. He is also working as an Academic Counselor of IGNOU in Aditi College. 

By Jitu

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